Thursday, 27 September 2018

अवैध संबंध हुए वैध
लगी हवा पश्चिम की जबसे भूल गए पुरवईया को!
जानें किसकी नजर लग रही ? अपनी सोन चिरैय्या को।
आॅखो पर बंधी पट्टी पर सन्देह तो था पर अब भरोसा हो गया है की कुछ दिख नही रहा है।
मीलार्ड ! जय हो आपकी , मिटा दीजिए भारतीय संस्कृति, खत्म कर दीजिए भारतीय संस्कार ?? ये भी तो बहुत पुराने है ।
शादी के बाद भी पति और पत्नी किसी दूसरे से सम्बन्ध बनानें के हकदार है, तो फिर विवाह को एक पवित्र रिश्ता कैसे मानेगें ?
गुरुवार को दिए अपने फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने आइपीसी की धारा 497 व सीआरपी की धारा 198 को असवैधानिक करार दिया। कोई विवाहित महिला यदि किसी विवाहित या अविवाहित पुरुष से संबंध बनाती है तो सिर्फ पुरुष ही दोषी क्यो ? जबकि महिला भी बराबर की जेम्मेदार है।  
   कोर्ट  ने हैरानी जताते हुए कहा कि अगर विवाहित महिला के पति की सहमति से कोई विवाहित पुरुष महिला से शारीरिक संबंध स्थापित करता है तो वह अपराध नही है। इसका मतलब क्या महिला पुरुष की निजी मलकियत है। जो वो उसकी मर्जी से चले। कोर्ट ने इसे अनुच्छेद 14,15,21 का उलंघन माना।
कोर्ट ने कहा कि व्यभिचार तलाक का आधार हो सकता है अपराध का नही। व्यभिचार को सिर्फ तालाक का आधार बना देने से हम उन लोगो की मदद कर रहे हो जो अपनी पत्नी या पति से तलाक चाहते है,तो क्या कोर्ट ने लोगो के लिए तलाक़ लेने का एक आसान रास्ता इजात कर दिया है। कही न कही ऐसा करके हम विवाह के पवित्र बंधन का भी मजाक बना रहे है। सात जन्म का बंधन चुटकियो में खत्म करने का बेहद आसान तरीका।
कोर्ट ने कहा की यदि कोई आत्महत्या कर लेता है तोदूसरे के खिलाफ आत्महत्या के लिए उकसाने का केस बनेगा क्या हम ऐसे कार्य को प्रशय दे सकते है जहाँ दूसरे के आत्महत्या करने की संभावना से इनकार नही किया जा सकता।
सवाल बहुत से है पर जवाब एक का भी नही।
क्या अब अलाउदीन खिलजी महारानी पद्मावती पर कुदृष्टि डालने के लिए व्यभिचारी नही कहलायेगा।
उच्चतम न्यायालय को इस फैसले की पुनः समीक्षा करनी चाहिए आइपीसी 497 में महिलाओं को भी शामिल किया जाना चाहिए इससे अनुछेद 14 15 21 का उलंघन भी नही होगा । और इस अनैतिक कार्य के लिए लोगो मे मन में डर भी बना रहेगा क्योकि विवाह एक पवित्र कार्य है और यह सामाजिक तौर पर भी गलत है।
इससे न सिर्फ जीवनसाथी बल्कि बच्चे और परिवार के अन्य सदस्य भी शारीरिक और मानसिक तनाव से गुजरते है।
साहब क्या हमारे देश की सँस्कृति बचाने के लिए कोई संशोधन कर सकते हैं???
बस पूछ लिया....
बरबाद करने में तो तन मन धन से लगे नजर आ रहे है।

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