लगता ही नहीं के एक अर्सा सा बीत गया तुमसे मिले हुए.. लगता है के जैसे कल की ही बात है
तुम्हे याद है ना तुम अपना गुलाबी वाला बैग जिसमे कुछ कॉपी, चॉकलेट्स और एक छोटी सी पर्स (जिसमें तुम अपने पैसे रखती थी) पड़ी होती थी
कंधे पे टाँगे मेरे घर(बैचेलरस् का रूम) में आई थी। कितना बकर बकर बतियाती रहती थी तुम। बिस्तर पे तितर-बितर किताबें और कपड़ों को
बड़बड़ाते हुए(तुमसे बेहतर तो जानवर होते हैं कम से कम जहाँ सोते हैं उस जगह को तो साफ़ रखते हैं!!) उनकी सही जगह रख देती थी।
पास बैठ के अपनी सारी बतकही सुनाते सुनाते आलू कब काट देती थी पता ही नहीं चलता था।
पता है कोशिश तो कई बार की थी मैंने के घर जैसा खाना बनाऊ पर मम्मी वाले खाने का स्वाद तुम्हारे आने पे ही फील होता था।
तुम्हारी आलू भुजिया और वो तिकोने पराठे अभी भी मुस्कान दे जाते हैं। तुम्हारे आने पे झाड़ू भी लग जाती थी :P ! तुम्हारे किस्से सुनते सुनते कब दोपहर हो जाती पता ही नहीं चलता था। तुम जब सर दबाती थी न तो मैं बस यही सोचता था के बस अभी 2 बज जायेगा और तुम चली जाओगी और ये पल भी गुज़र जायेगा।
बहुत सी खट्टी मीठी यादें हैं जो तुमने दी है मुझे। तुम्हारा प्रेम था के मुझे इस आस में बंधे रखता था के सब अच्छा हो जायेगा। तुममें सबसे अच्छा दोस्त देखा था मैंने। और इस सब से बड़ी बात के तुम वो भी समझती थी जो मैं कई बार कह नहीं पाया था।
खैर अब तो वो समय गुज़र गया और मैं भी बदल गया हूँ। अब मेरे कमरे में किताबें अपनी जगह पे होती है और कपड़े भी तह होके ही रखे रहते हैं।
मैंने अच्छी आलू भुजिया बनाना भी सीख़ लिया है। और अब झाड़ू भी रोज़ लगा देता हूँ। जब भी अकेले होता हूँ तो स्लो म्यूजिक में तुम्हारा फेवरेट "आजा पिया तोहे प्यार दू.." चला लेता हूँ आँख बंद करता हूँ और सोचता हूँ के वो पगलिया सी लड़की मेरा सर दबा रही है.. मेरी बातों पे हँस रही है अपने दुःख को छुपा रही है बिन मेरे कहे मेरी मजबूरियों को समझ रही है।
ज़ीना सिख लिया है मैंने.. इतना मुश्किल भी नहीं है.. अकेले कहाँ हूँ? बहुत सी यादें हैं, ज़िम्मेदारियाँ हैं, काल्पनिक सपने हैं, अधूरे ख्वाब हैं... और इन सब से परे वो वादा है हम दोनों का "कभी भी न बदलने का.. "
न तुम बदली और न मैं.. कभी आना मेरे घर.. अपने Hubby को लेके.. आलू की भुजिया खिलाऊंगा तिकोने पराठे के साथ और वो गाना भी बजाऊंगा स्लो वॉल्यूम में..
"मैं हूँ पानी के बुलबुले जैसा.. तुझे सोचूं तो फूट जाता हूँ😊😊👆
तुम्हे याद है ना तुम अपना गुलाबी वाला बैग जिसमे कुछ कॉपी, चॉकलेट्स और एक छोटी सी पर्स (जिसमें तुम अपने पैसे रखती थी) पड़ी होती थी
कंधे पे टाँगे मेरे घर(बैचेलरस् का रूम) में आई थी। कितना बकर बकर बतियाती रहती थी तुम। बिस्तर पे तितर-बितर किताबें और कपड़ों को
बड़बड़ाते हुए(तुमसे बेहतर तो जानवर होते हैं कम से कम जहाँ सोते हैं उस जगह को तो साफ़ रखते हैं!!) उनकी सही जगह रख देती थी।
पास बैठ के अपनी सारी बतकही सुनाते सुनाते आलू कब काट देती थी पता ही नहीं चलता था।
पता है कोशिश तो कई बार की थी मैंने के घर जैसा खाना बनाऊ पर मम्मी वाले खाने का स्वाद तुम्हारे आने पे ही फील होता था।
तुम्हारी आलू भुजिया और वो तिकोने पराठे अभी भी मुस्कान दे जाते हैं। तुम्हारे आने पे झाड़ू भी लग जाती थी :P ! तुम्हारे किस्से सुनते सुनते कब दोपहर हो जाती पता ही नहीं चलता था। तुम जब सर दबाती थी न तो मैं बस यही सोचता था के बस अभी 2 बज जायेगा और तुम चली जाओगी और ये पल भी गुज़र जायेगा।
बहुत सी खट्टी मीठी यादें हैं जो तुमने दी है मुझे। तुम्हारा प्रेम था के मुझे इस आस में बंधे रखता था के सब अच्छा हो जायेगा। तुममें सबसे अच्छा दोस्त देखा था मैंने। और इस सब से बड़ी बात के तुम वो भी समझती थी जो मैं कई बार कह नहीं पाया था।
खैर अब तो वो समय गुज़र गया और मैं भी बदल गया हूँ। अब मेरे कमरे में किताबें अपनी जगह पे होती है और कपड़े भी तह होके ही रखे रहते हैं।
मैंने अच्छी आलू भुजिया बनाना भी सीख़ लिया है। और अब झाड़ू भी रोज़ लगा देता हूँ। जब भी अकेले होता हूँ तो स्लो म्यूजिक में तुम्हारा फेवरेट "आजा पिया तोहे प्यार दू.." चला लेता हूँ आँख बंद करता हूँ और सोचता हूँ के वो पगलिया सी लड़की मेरा सर दबा रही है.. मेरी बातों पे हँस रही है अपने दुःख को छुपा रही है बिन मेरे कहे मेरी मजबूरियों को समझ रही है।
ज़ीना सिख लिया है मैंने.. इतना मुश्किल भी नहीं है.. अकेले कहाँ हूँ? बहुत सी यादें हैं, ज़िम्मेदारियाँ हैं, काल्पनिक सपने हैं, अधूरे ख्वाब हैं... और इन सब से परे वो वादा है हम दोनों का "कभी भी न बदलने का.. "
न तुम बदली और न मैं.. कभी आना मेरे घर.. अपने Hubby को लेके.. आलू की भुजिया खिलाऊंगा तिकोने पराठे के साथ और वो गाना भी बजाऊंगा स्लो वॉल्यूम में..
"मैं हूँ पानी के बुलबुले जैसा.. तुझे सोचूं तो फूट जाता हूँ😊😊👆
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